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सिंघल एनर्जी कोयला परिवहन में भी पर्यावरण नियमों का बना रहा मजाक, झांकने तक नहीं जा रहे अधिकारी

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रायगढ़। पर्यावरण विभाग के कारनामे भी अजब-गजब हैं। एक ओर तमनार और घरघोड़ा में कैरिंग कैपेसिटी सर्वे होना है। दूसरी ओर सिंघल एनर्जी को विस्तार के लिए अनुमति देने जनसुनवाई रखी गई है। सिंघल एनर्जी तो कोयला परिवहन में भी पर्यावरण नियमों का मजाक बना रहा है। डंपरों में कोयले के ऊपर तिरपाल भी नहीं है।
एनजीटी की ओवरसाइट कमेटी की रिपोर्ट पर एनजीटी ने तमनार और घरघोड़ा के पर्यावरणीय स्थिति का आकलन करने के लिए कैरिंग कैपेसिटी सर्वे करने का आदेश दिया है। इसके लिए नागपुर की संस्था नीरी से प्रस्ताव भी मंगवाए गए हैं। और इधर प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों का विस्तार किया जा रहा है। सिंघल एनर्जी का उत्पादन 40 मेगावाट करने के लिए पर्यावरणीय अनुमति लेने 28 जुलाई को जनसुनवाई रखी गई है। लेकिन कंपनी लगातार प्रदूषण फैलाने में लगी हुई है। एसईसीएल की बरौद खदान से सिंघल एनर्जी को कोयले की आपूर्ति की जा रही है। सोमवार को एक डंपर कोयला लोड कर सिंघल एनर्जी पहुंचा। सीजी 13 वाय 6256 नंबर की गाड़ी में कोयले को तिरपाल से नहीं ढंका गया था। रास्ते भर कोल डस्ट उड़ती रही और कोयले का चूरा रोड पर भी गिरता रहा। ड्राइवर के पास टीपी भी नहीं थी। पूछताछ करने पर पता चला कि डीओ किसी आरके अग्रवाल के नाम पर था। हैरत की बात यह है कि कलेक्टर रायगढ़ ने इस तरह कोयला परिवहन करने  वाली गाडिय़ों पर कार्रवाई के लिए तेजतर्रार अफसरों की कमेटी बनाई थी। लेकिन यह सिर्फ कागजों में ही रह गई। किसी भी अधिकारी को रायगढ़ में बढ़ रहे प्रदूषण से कोई सरोकार नहीं है। कोई भी अधिकारी इस पर काबू करने अपने एसी चेंबर से बाहर नहीं निकल रहे। 

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